बेला अमृत गया आलसी सो रहा

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अमृत बेला

बेला अमृत गया , आलसी सो रहा , बन अभागा ।
साथी सारे जगे तू न जागा ।।

झोलियाँ भर रहे भाग्य वाले , लाखों पतितों ने जीवन सँभाले |
रंक राजा बने , भक्तिरस में सने , कष्ट भागा ।।१ ।।

कर्म उत्तम थे नर तन जो पाया , आलसी बन के हीरा गँवाया ।।
उल्टी हो गई मति , करके अपनी क्षति , रोने लगा || २ ||

कर्म वेदों का देखा न भाला , वेला अमृत गया न सम्भाला ।
सौदा घाटे का कर , हाथ माथे पे धर , रोने लागा || ३ ||

देश तूने न अब भी विचारा , सिर से ऋषियों का ऋण न उतारा ।।
हंस का रूप था , गदला पानी पिया , बन के कागा ।। ४ ।। 

 

राष्ट्रगान आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम् ।

 

आर्य वीर दल ध्वज गान

 

राष्ट्रगान आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम् ।

 

यह ओ३म का झंडा आता है

 

ओ३म् ध्वजगान

 

प्रातः कालीन गीत , जाग गए अब सोना क्या रे

 

प्रातः कालीन गीत , जाग गए अब सोना क्या रे

 

अमृत वेला जाग अमृत बरस रहा

 

उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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