ओ३म् ध्वजगान
जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी , विश्वप्रेम प्रतिमा अति प्यारी ।।
सत्य सुधा बरसाने वाला , स्नेहलता सरसाने वाला ।
सौम्य सुमन विकसाने वाला , विश्व विमोहक भवभयहारी ।।१ ।।
इसके नीचे बढ़े अभय मन , सत्पथ पर सब धर्मधुरी जन ।
वैदिक रवि का हो शुभ उदयन , आलोकित होवें दिशि सारी ।।२ ।।
इससे सारे क्लेश शमन हों , दुर्मति दानव , द्वेष दमन हों ।
अति उज्ज्वल अति पावन मन हों , प्रेम तरंग बहे सुखकारी ।।३ ।।
इसी ध्वजा के नीचे आकर , ऊँच नीच का भेद भुलाकर ।
मिले विश्व मुद मंगल गाकर , पन्थाई पाखण्ड विसारी ।।४ ।।
इसी ध्वजा को लेकर कर में , भर दें वेद ज्ञान घर घर में ।
सुभग शान्ति फैले घर – घर में , मिटे अविद्या की अंधियारी ।।५ ।।
विश्व प्रेम का पाठ पढ़ाएँ , त्याग अहिंसा को अपनाएँ ।
जग में जीवन ज्योति जगाएँ , त्याग पूर्ण हो वृत्ति हमारी ।। ६ ।।
आर्य जाति का सुयश अक्षय हो , आर्यध्वजा की अविचल जय हो ।
आर्यजनों का ध्रुव निश्चय हो , आर्य बनाएँ वसुधा सारी ।।७ ।।