प्रातः कालीन गीत
जाग गए अब सोना क्या रे ।।
जो नर तन देवन को दुर्लभ । सो पाया अब रोना क्या रे।।१ ।।
हीरा हाथ अमोलक आया । काँच भाव से खोना क्या रे || २ ||
जब वैराग्य ज्ञान घिर आया । तब चाँदी अरु सोना क्या रे || ३ ||
दारा सुतन भुवन में घिर कर । भार सभी का ढोना क्या रे।।४ ।।
मन मन्दिर नहीं कीन्हाँ निर्मल बाहर का तन धोना क्या रे।।५ ।।
ओ३म् नाम का सुमीरन कर ले । अन्त समय में होना क्या रे ।। ६ ।।