सार्वदशिक आर्यवीर दल : ऐतिहासिक तथ्य
1926 में स्वामी श्रद्धानन्द जी की निर्मम हत्या के उपरान्त, आर्य नेताओं व उत्सवों की सुरक्षा हेतु एक विशेष समर्पित बल की आवश्यकता सर्वत्र महसूस की गई। 1927 में दिल्ली में हुए, प्रथम आर्य महासम्मेलन में महात्मा नारायण स्वामी जी की अध्यक्षता में आर्य रक्षा समिति का गठन किया गया । समिति का कार्य था कि वह देश भर में भ्रमण कर 10 हजार ऐसे स्वयं सेवकों का चयन करे,जो धर्म रक्षा हेतु प्राण तक अर्पण करने में सदा उद्यत हों और रक्षा निधि के लिए 10 हजार रुपया एकत्र करे।
आर्यों के अदम्य उत्साह के फलस्वरूप बहुत कम समय में ही 12 हजार स्वयंसेवक व लक्षित धन एकत्र हो गया। समिति ने स्वयंसेवकों के दल का नाम आर्यवीर दल’ रखा और 26 जनवरी 1929 को सार्वदशिक सभा ने इसका संविधान बनाकर ‘आर्यवीर दल’ की विधिवत स्थापना कर दी। श्री शिवचन्द्र जी इसके प्रथम संचालक नियुक्त किए गए।
अल्प काल में ही आर्यवीर दल ने प्रशंसनीय कार्य किए, जिसके फलस्वरूप आर्यों की शोभायात्रा, नगर कीर्तन और उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने लगे। आर्य नेताओं पर होने वाले आक्रमण रुक गए।
1940 में ओम प्रकाश त्यागी जी को आर्यवीर दल का संचालक नियुक्त किया गया । धुन के धनी, अदम्य साहसी व शूरवीर युवक का नेतृत्व पाकर आर्यवीर दल दिन-दुनी रात-चौगुनी उन्नति करने लगा। नौआखली (पं.बंगाल) में मुस्लिम गुण्डों से हिन्दुओं की रक्षा, पाकिस्तान सीमा पार कर भारतीय चौकी पर आक्रमण करने आए अंसार गुण्डों से पाकिस्तानी ध्वज छीनना, हैदराबाद निजाम के बैंक से 30 लाख रुपया लूट कर सरदार पटेल को सौंपना आदि वीरोचित कार्य आर्यवीरों ने अपनी जान पर खेलकर सफलतापूर्वक संपन्न किए।
देश पर आपदा आने पर आर्यवीर कहां पीछे रहने वाले थे बंगाल,असम,पंजाब व गुजरात की बाढ़ में हजारों पीड़ितों की सेवा व राहत कार्य भी आर्यवीरों ने किए। हैदराबाद का सत्याग्रह हो या कहीं महामारी फैली हो, आर्यवीर दल हर कार्य में सदा उपस्थित रहा है।