अमृत वेला जाग अमृत बरस रहा ।
छोड़ नींद का राग अमृत बरस रहा ।।
चार बजे के पीछे सोना , है अपने जीवन को खोना ।
झट खटिया को त्याग , अमृत बरस रहा।।१ ।।
नीरस जीवन में रस भर ले , धार धर्म भवसागर तर ले ।
त्यज मिथ्या अनुराग , अमृत बरस रहा।।२ ।।
वेदज्ञान की ओढ़ चदरिया , छोड़ कपट चल प्रेम डगरिया ।
धो कुसंग के दाग , अमृत बरस रहा ।।३ ।।
परोपकार का लक्ष्य बना ले , ऊँचा अपना हाथ उठा ले ।
शुभ कर्मों में लाग , अमृत बरस रहा ।।४ ।।
बड़े भाग्य से नर तन पाया , ऋषि मुनियों ने यहीं बताया । राख इसे बेदाग , अमृत बरस रहा ।।५ ।।