वेदों का आदेश यही है

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जागो रे, जागो रेऽऽऽऽ, जाऽऽ गोऽऽऽऽ जागो रे ।

तुमको कितनी बार जगाया तुमको कितनी बार ।।

वेदों का आदेश यही है।

गीता का उपदेश यही है।अर्जुन का सन्देश यही है।

चलते नहीं भई क्यों तुम कृष्ण की शिक्षा के अनुसार । । १ । ।

शंकर ने जीवन दे डाला।

आत्म पतन से तुम्हें सँभाला। अंधकार में किया उजाला ।।

कुम्भकर्ण की निद्रा से करो न अब तुम प्यार ।। २ ।।

अस्सी घाव लगे थे तन में।

फिर भी व्यथा नहीं थी मन में कनवाहा के भीषण रण में ।।

तुम्हें बचाने को निकली थी, साँगा की तलवार ।।३।।

शत्रु- हृदय दहलाने वाला।

पड़ते ही अकबर से पाला चमक उठा था जिसका भाला।

उस प्रताप के रण विक्रम को, तुमने दिया विसार ।।४।।

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विश्व विदित शिवराज बली थे।

रण में कृष्ण समान छली थी। जिसके सब उद्योग फली थे ।।

रणभूमि में गूँज उठा था, जिसका जय जयकार ।।५।।

जिसके तीर खड्ग के आगे ।

अपने प्राण यवन ले भागे। फिर भी मारे गए अभागे ।

उस बन्दा ने मचा दिया था रण में हाहाकार ।। ६ ।।

पत्थर ईंट बरसाने वालो ।

दूध में जहर पिलाने वालो । वेद- विरुद्ध मत के मतवालो।

दयानन्द स्वामी ने दिया था, तुम पर जीवन वार ।।७।।

समय नहीं है, अब सोने का।

गफलत में अवसर खोने का गया जमाना अब रोने का।।

दस्यु दलन से हलका कर दो, आर्य भूमि का भार ।।८।।

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