ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, नहीं किसी ने यश पाया |
ब्रह्मचर्य से परशुराम ने, इक्कीस बार धरणी जीती |
ब्रह्मचर्य से वाल्मीकी ने, रच दी रामायण नीकी।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, किसने जीवन रस पाया ?
ब्रह्मचर्य से रामचन्द्र ने, सागर पुल बनवाया था।
ब्रह्मचर्य से लक्ष्मणजी ने मेघनाद मरवाया था |
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, सब ही को परवश पाया ।
ब्रह्मचर्य से महावीर ने, सारी लंका जलाई थी |
ब्रह्मचर्य से अगंदजी ने, अपनी पैज जमाई थी |
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, सबने ही अपयश पाया।
ब्रह्मचर्य से आल्हा उदल ने, बावन किले गिराए थे |
पृथ्वीराज दिल्लीश्वर को भी, रण में मार भगाए थे |
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, केवल विष ही विष पाया ।
ब्रह्मचर्य से भीष्म पितामह, शरशैया पर सोये थे।
ब्रह्मचारी वर शिवा वीर से, यवनों के दल रोये थे ।
ब्रह्मचर्य के रस के भीतर, हमने तो षटरस पाया |
ब्रह्मचर्य से राममूर्ति ने, छाती पर पत्थर तोड़ा |