भूमिका”
संगच्धवं संवदध्वं -ऋग्वेद,
अगस्त 2022 में श्री सत्य प्रकाश अरोड़ा जी ने मुझसे कहा कि आर्य वीर दल के इतिहास, कार्य, वैधानिकता के संबंध में बहुत से आर्य समाजियों को पर्याप्त जानकारी नहीं है। अतः आप इस बारे में हमारे समाज में आकर के जानकारी दें। उस कार्यक्रम के पश्चात श्री दर्शन दयाल जी शर्मा (सेवानिवृत्त एसएसपी सीबीआई) ने आर्य वीर दल फरीदाबाद को आर्य वीरों की गोष्ठि या सैद्धांतिक शिविर लगाने के लिए, तुरंत चेक काट कर के दिया ।
एक बार श्रद्धेय आचार्य ऋषि पाल जी, प्रधान केंद्रीय सभा फरीदाबाद व प्राचार्य गुरुकुल इंद्रप्रस्थ, आदरणीय श्री शिवकुमार टुटेजा जी, श्री देशबंधु 5 भाई साबुन वाले उपप्रधान आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा, श्री कर्मचंद शास्त्री जी, श्री योगेंद्र फोर जी, श्री होती लाल आर्य जी इत्यादि की उपस्थिति श्री सत्य प्रकाश अरोड़ा जी ने कहा कि आर्य वीर दल के बारे में कोई ऐसी पुस्तक लिखें जिससे सब भ्रांतियों का निराकरण हो।
उस पुस्तिका का व्यय-आर्य समाज सेंट्रल सेक्टर 15 वहन करेगा। आर्य समाज के युवा संगठनों में एकता हो और सारी युवा शक्ति एक बैनर के तले वैदिक धर्म का प्रचार करे, यह पुस्तिका इस पवित्र उद्देश्य से लिखी गई है। इसके प्रकाशन हेतु सहयोग के लिए मैं आर्य समाज सेंट्रल सेक्टर 15 फरीदाबाद के सभी अधिकारियों का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ।-
वैदिक ज्ञान का पिपासु
धर्मेन्द्र जिज्ञासु
महामंत्री आर्य वीर दल हरियाणा प्रांत ग्राम सुनपेड़, तहसील बल्लबगढ़, जिला फरीदाबाद
हरियाणा – 121004
मोबाइल नंबर- 8376070712

आर्य वीर दल : पृष्ठभूमि, स्थापना और प्रसार
विभिन्न सम्प्रदायों के महाषड़यन्त्र के परिणामस्वरूप युगदृष्टा महर्षि दयानन्द जी को दूध में, पिसा हुआ सीसा तथा संखिया विष दिया गया। इस महाषड़यन्त्र में पौराणिक , मुस्लिम डाक्टर, ईसाई सरकारी अधिकारी आदि अनेक पापी सम्मिलित थे । दीपावली की रात, 30 अक्तूबर सन् 1883 ई को अजमेर में राजा भिनाय की कोठी में महर्षि दयानन्द जी का बलिदान हो गया।
आर्य समाज शीघ्र ही इस मानसिक आघात से उभरकर, वैदिक धर्म के प्रचार कार्य में जुट गए। विरोधी मत-सम्प्रदाय आर्यसमाज के तेजस्वी आन्दोलन को सहन न कर सके। अतः आर्यसमाज के कार्यकर्त्ताओं, नेताओं, विद्वानों, सन्यासियों पर प्राणघातक आक्रमण होते रहे।

महर्षि दयानन्द जी के पश्चात् 27 जुलाई सन् 1893 ई. को वीर चिरंजीव लाल आर्योपदेशक की, 6 मार्च सन् 1897 ई. को राष्ट्ररक्षक पं. लेखराम जी की, 25 जुलाई सन् 1904 ई. को फरीदकोट में पं. तुलसीराम जी की, जम्मू में वीर रामचन्द्र की 20 जनवरी सन् 1923 ई. को तथा 23 दिसम्बर सन् 1926 ई. को स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या कर दी गई।

सार्वदेशिक सभा द्वारा आर्य रक्षा समिति की स्थापना –
जुलाई 1927 ई.आर्यों की हत्या, धमकी मिलने तथा नानाविध तरीकों से किए जाने वाले अनुचित विरोध की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए आर्यसमाज द्वारा दिल्ली में एक विराट आर्य महासम्मेलन का आयोजन 14 जुलाई सन् 1927 ई. में महात्मा हंसराज जी की अध्यक्षता में हुआ। आर्य वीर दल ही क्यों ?
इस महासम्मेलन में प्रस्ताव संख्या दस यह पास किया गया, ‘ ” वर्तमान संकट और सामाजिक सेवाओं के महत्व को दृष्टि में रखते हुए, यह सम्मेलन आर्यजाति के धार्मिक तथा सामाजिक अधिकारों की रक्षा के लिए निम्नलिखित सज्जनों की “आर्य रक्षा समिति” बनाता है, जो सार्वदेशिक सभा के अधीन होगी। यह कमेटी देश भर में भ्रमण करके निम्नलिखित कार्य का सम्पादन करें-
1. दश हजार ऐसे स्वयंसेवकों की भरती करे जो धर्मरक्षा के लिए प्राण तक अर्पण के लिए सर्वदा उद्यत हों।
2. रक्षा निधि के लिए 50 हजार रूपया एकत्र करें। इस निधि का धन सार्वदेशिक सभा के अधीन होगा।
3. स्थान और समय की अनुकूलता देख कर शीघ्र इस प्रान्तिक सभा की सलाह से और सार्वदेशिक सभा की अनुमति से सब आवश्यक उपायों का जिसमें सत्याग्रह भी शामिल है- अवलम्बन करें। यह समिति अपने कार्य के लिए नियम बनाए और सम्मेलन के समाप्त होते ही उपर्युक्त कार्य आरम्भ कर दे।
Table of Contents
आर्य रक्षा समिति के सदस्य –
1.श्री नारायण स्वामी जी-देहली
2. श्री भाई परमानन्द जी – लाहौर
3.प्रो. रामदेव जी – गुरुकुल कांगड़ी
4. स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी – लाहौर
5. महाशय कृष्ण जी – लाहौर
6.बाबू सीताराम जी वकील-खीरी
11.श्री श्रीराम जी – वृन्दावन
12. श्री स्वामी रामानन्द जी – दिल्ली
13. श्री विजयशंकर जी – बम्बई
14. श्री देवेश्वर जी स्नातक- रावलपिण्डी
15.श्री लाला देशबन्धु जी – दिल्ली
16. श्री पं. इन्द्र जी – दिल्ली
प्रस्तावक : श्री नारायण स्वामी जी
अनुमोदक – श्री पं. इन्द्र जी
समर्थक – श्री स्वामी रामानन्द जी
विरोधी – श्री नानक चन्द जी लाहौर और प्रिंसीपल दीवानचन्द जी कानपुर (सार्वदेशिक हिन्दी पत्र – देहली, अगस्त 1928 भाद्रपद 1, पृष्ठ सं. 21-22)
आर्य रक्षा समिति का विस्तार तथा कार्यकारिणी सभा :-
आर्य सम्मेलन के पश्चात, रक्षा समिति में ये नाम और बढ़ा दिए गए-
1.श्री पं. रामगोपाल जी शास्त्री, रिसर्च स्कॉलर – लाहौर
2. श्री पं. रामरक्ष जी उपाध्याय – रांची
3. श्री स्वामी कृष्णानन्द जी – करांची
4. श्री स्वामी चिदानन्द जी
5.श्री स्वामी ब्रह्मानन्द जी
6. श्री चौ. पीरूसिंह जी
7. श्री भक्त फूल सिंह जी
8. श्रीमती ठाकुर देवी जी
9. श्री लाला नारायणदत्त जी
10. श्री लाला ज्ञानचन्द जी
11. श्री बाबू उमाशंकर जी वकील
12. श्री पं. राशबिहारी तिवारी
13.श्री स्वामी कृपानन्द जी
कार्य चलाने के लिए, देहली में निवास रखने वाले इन सज्जनों की एक कार्यकारिणी सभा बनाई गई-
1. श्री नारायण स्वामी जी
2. श्री स्वामी रामानन्द जी
3. श्री पं. रामचन्द्र जी
4. श्री स्वामी चिदानन्द जी
5. श्री लाला देशबन्धु जी
6. श्री प्रो. इन्द्र जी
7. श्री लाला ज्ञानचन्द जी
8. श्री नारायणदत्त जी
आर्य रक्षा समिति ने इन महाशयों का एक डेपुटेशन बनाया कि वह देश भर में भ्रमण करके समिति के उद्देश्यों का प्रचार करे-
1. श्री नारायण स्वामी जी
2. श्री पं. रामचन्द्र जी
3. श्री प्रो. रामदेव जी
4. श्री भाई परमानन्द जी
5. श्री महाशय कृष्ण जी (सार्वदेशिक हिन्दी पत्र – देहली, अगस्त 1928 ई. भाद्रपद 1, पृष्ठ 25-26)
आर्य रक्षा समिति और आर्य वीर दल के नियम –

1.समिति का नाम-आर्य रक्षा समिति होगा।
2.समिति के उद्देश्य
(क) विरोध आक्रमणों से आर्यसमाज और आर्य सभ्यता की रक्षा के उपाय करना।
(ख) अनाथ बच्चों, विधवा स्त्रियों अथवा अन्य कष्ट में फंसे हुए लोगों की रक्षा का प्रयत्न करना और उन्हें धर्मच्युत होने से बचाना।
(ग) आर्य युवकों में मनुष्य जाति की सेवा का भाव उत्पन्न करना ।
(घ) उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आर्य वीर दल का संचालनकरना
5 सभासद आर्य वीर दल के प्रतिनिधि
सभापति – 1
प्रधान मन्त्री तथा प्रधान दलपति 1
https://youtu.be/Wp07WU6FoXw
द्वितीय आर्य महासम्मेलन – 1931 ई –
महात्मा नारायण स्वामी जी की अध्यक्षता में बरेली (उत्तर प्रदेश) में आर्य महासम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में आर्य वीर दल की शाखा प्रत्येक प्रान्त, नगर और आर्यसमाज में स्थापित करने का आदेश दिया गया और आर्य वीर दल के नियमित संचालन के लिए बलिष्ठ आर्य वीरों को प्रशिक्षण के लिए भेजा गया।
सार्वदेशिक सभा का महत्वपूर्ण निर्देश :-
सेवा में,
श्री मन्त्री जी, आर्यसमाज!
श्रीमन्नमस्ते!
समाचार पत्रों तथा प्रान्तिक प्रतिनिधि सभाओं द्वारा आपको यह विदित हो चुका होगा कि सार्वदेशिक सभा ने आर्य वीर दल के देशव्यापी संगठन करने का निश्चय किया है और इस निश्चय की पूर्ति के लिये प्रान्तों के नाम आदेश भी भेज दिए गए हैं। आशा है आपने अपने स्थान पर आर्यवीर दल के संगठन का कार्य आरम्भ कर दिया होगा। यदि न किया हो तो आप बगैर किसी विलम्ब के यह कार्य जारी कर दीजिए।
यदि आपको आर्यवीर दल सम्बन्धी नियमादि की आवश्यकता हो तो आप सार्वदेशिक सभा ‘कार्यालय से मंगा सकते हैं। आर्यवीर दल का संगठन करते हुए यह ध्यान रखा जाये कि उसका प्रबन्ध या तो आर्यसमाज की अन्तरंग सभा के हाथ में हो अथवा ऐसी उपसमिति के हाथ में हो जिसका निर्माण अन्तरंग सभा ने किया हो। आर्यवीर दल के अखिल भारतीय संगठन में वही दल सम्मिलित हो सकेंगे
जिनका प्रबन्ध स्थानीय
सार –
कोषाध्यक्ष – 1
कानूनी सलाहकार -1
आर्यसमाज के हाथ में होगा जिन समाजों को यह घोषणा-पत्र भेजा जा रहा है उनका कर्तव्य है कि वह अपने और पास की अन्य छोटी समाजों को ‘आर्यवीर दल की स्थापना” की प्रेरणा करें और जिन स्थानों पर आर्यसमाज नहीं है वहां के लिये समीपस्थ आर्यसमाजों को प्रयत्न करना चाहिए।
(साभार : सर्वदेशिक हिन्दी मासिक पत्र – देहली, जून 1942 ई., पृष्ठ 134 )
आर्यवीर दल का प्रथम शिक्षण केन्द्र –

सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की अन्तरंग सभा के 5-7-1942 के महत्वपूर्ण निश्चय के अनुसार यह शिक्षण केन्द्र देहली से 12 मील दूर बदरपुर गांव के समीप तुगलकाबाद स्टेशन पर गुरुकुल की धर्मशाला में खोला गया। केन्द्र का उद्घाटन 26 जुलाई 1942 को कर दिया गया।
(साभार : सार्वदेशिक हिन्दी मासिक पत्र – देहली, जुलाई – 1942 ई., 204) पृष्ठ

सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से तुगलकाबाद में आर्य वीर शिक्षण शिविर पं. ओ३मप्रकाश जी शिक्षक आर्यवीर दल के दलपतित्व में बड़े समारोह के साथ प्रारम्भ हुआ । शिविर में भाग लेने के लिए देहली, बंगाल, मद्रास, राजस्थान, युक्त प्रान्त और पंजाब के सज्जन आए।
शिविर का उद्घाटन करते हुए प्रो. इन्द्र जी विद्यावाचस्पति ने आर्य वीर दल के उद्देश्य और कार्य समझाए।
गौरक्षा के लिए आर्य वीरों को निर्देश सन् 1953 ई :-
सार्वदेशिक सभा के उपमन्त्री तथा गोरक्षा समिति के संयोजक श्री लाला रामगोपाल जी का प्रेस वक्तव्य- ” आर्य वीरों गोहत्या का कलंक भारत के माथे से धोकर महर्षि दयानन्द,
श्रीकृष्ण के वचनों को पूरा करों
आर्य वीर दल का महत्वपूर्ण निश्चय :-
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा अखिल गोरक्षा आंदोलन के महत्व को अनुभव करते हुए आर्य वीर दल के समस्त सदस्यों को आदेश दिया जाता है कि वे सार्वदेशिक सभा द्वारा प्रेषित प्रतिज्ञा पत्र को भरकर अपने अधिकारी के द्वारा श्रद्धानन्द बलिदान भवन, देहली भेज दें। दल के दीक्षित वीरों के लिए इसका भरना सर्वथा अनिवार्य है।
अपनी दैनिक, साप्ताहिक, स्वाध्याय मण्डल तथा मासिक शाखाओं के बौद्धिक शिक्षण में गोरक्षा के महत्व पर पूर्ण बल दें और साथ ही अपने नगरों में सार्वजनिक सभाओं तथा गोष्ठी मण्डलों द्वारा जन जागृति उत्पन्न करें। इस शुभ यज्ञ का प्रारम्भ करते हुये वे अपनी प्रथम आहुति इस रूप में दें कि वे अपने गणवेष में चमड़े की पेटी का परित्याग कर निवाड़ की पेटी का ही प्रयोग करें।
निवाड़ की पेटियां उन्हें केन्द्रीय वस्तु भंडार आर्यसमाज दीवान हाल, देहली से मिल सकेगी। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आंदोलन के इस प्रथम चरण को आर्य वीर दृढ़ता के साथ पूर्ण करते हुए अग्रसर होंगे।”-
ओमप्रकाश पुरुषार्थी प्रधान सेनापति, अखिल भारतीय आर्य वीर दल, बलिदान भवन, देहली
(साभार : सर्वदेशिक, जून 1953 ई. पृष्ठ 14)
आर्य जनता से अपील :-
श्री पं. इन्द्र जी विद्यावाचस्पति, मन्त्री सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा देहली ने आर्य जनता के नाम निम्न अपील जारी की है।
क्षात्र धर्म की आवश्यकता तथा उसका अभिप्राय
वैदिक धर्म मनुष्य जाति में चारों वर्णों की आवश्यकता को स्वीकार करता है। जाति की हरेक आवश्यकता को पूरा करने के लिये वर्णों की रचना की गई है। जिस प्रकार का राजनैतिक संकट सामने से आता दिखाई दे रहा है
उसका मुकाबला करने के लिये क्षात्र धर्म की आवश्यकता है। आतताइयों के आक्रमण को रोकने और दुष्टो का नाश करने के लिये क्षत्रियों का जन्म होता है । हमारी जाति में सच्चे क्षत्रियों का अभाव सा हो गया है। यही कारण है कि हमारा देश राजनैतिक दृष्टि से बिल्कुल हीन और हमारी जाति हर प्रकार से अत्यन्त निर्बल दशा को पहुँच गई है। समय चाहता है कि आर्य जाति में क्षात्र धर्म फिर से प्रादुर्भाव किया जाये ।
क्षात्रधर्म के प्रादुर्भाव से मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि ऐसे सिपाही तैयार किये जायें जिनका पेशा लड़ाई करना है, मेरा अभिप्राय यह है कि जाति में क्षात्रधर्म की भावना पैदा । प्रत्येक जवान और प्रत्येक नवयुवती अपने देश, जाति और धर्म के लिये क्षात्रधर्म के अनुसार युद्ध करने को तैयार हो ।
आर्य वीर दल का उद्देश्य :-
आर्य वीर दल संगठन की जो योजना सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने प्रारम्भ की है उसका यही लक्ष्य है। यह केवल स्वयं सेवकों की भर्ती नहीं है। इसका उद्देश्य एक भावना को जन्म देकर जाति के अन्दर मानसिक क्रान्ति पैदा करना है। उस क्रान्ति का यह रूप होगा कि जो जाति अब तक अपने को
निर्मल समझे हुये हैं वह बलिष्ठ बनने का संकल्प करे।
जाति यह भी संकल्प करे कि वह आतताइयों का उत्तर देने, अपने उचित अधिकारों की रक्षा करने और न्याय के विरोधियों का दमन करने के लिये क्षात्र धर्म का पालन करने को उद्यत रहेगी।
आर्य वीर दल का कार्य :-
आज आर्य वीर दल की आवश्यकता आर्यावर्त, आर्य जाति और आर्य-धर्म की रक्षा करने के लिए है। तीनों में से हम एक को भी नहीं छोड़ सकते। आर्यसमाज ने ब्राह्मण तो बहुत पैदा किए परन्तु क्षत्रिय नहीं । आर्य वीर दल उस कमी को पूरा करेगा। वह आर्यसमाज में क्षत्रिय वर्ण पैदा करेगा।
इसी कार्य का बीजारोपण आज किया गया है और आप में से प्रत्येक का कर्तव्य है कि आप इस काम को आगे बढ़ाएं। आप लोग दिवाली के दीपकों की तरह हैं जो अपने अपने प्रान्तों में जाकर सैकड़ों दीपक जला देंगे। आप को देश में प्रत्येक व्यक्ति को यह काम सिखा देना चाहिए। अगर आपने इसी प्रकार काम किया तो 1 लाख आर्य वीर तैयार हो सकते हैं।
आपको चीजें लेकर यहां से जाना चाहिये –
शक्ति और आर्य देश, जाति व धर्म की रक्षा की भावना।
अन्त में आपने आर्यवीरों को आदेश दिया कि वे इसी समय तीन व्रत ग्रहण कर लें ।
( 1 )यह कि वे आर्य धर्म, देश व जाति के लिए यह प्राणोत्सर्ग करने को तैयार रहेंगे।
(2) आर्य वीर दल संगठन में भक्ति के साथ काम करेंगे।
(3) जब तक इस शिक्षण में रहेंगे अपने दलपति की आज्ञा को बिना ननुनच किए पालन करेंगे। सैनिक शिक्षा में प्रजातन्त्र से काम नहीं चल सकता । सार्वजनिक संस्थाओं और आर्यसमाज में भी इस अनुशासन की कमी से बहुत धक्का पहुंचा है।
(साभार : सर्वदेशिक हिन्दी मासिक पत्र- – देहली, अगस्त 1942 ई., पृष्ठ-224)
आर्य वीर दल ही क्यों ? :-
डा. आनन्द प्रकाश, उपमन्त्री, सार्वदेशिक सभा
सार्वदेशिक सभा ने आर्य वीर दल संगठन का प्रत्येक आर्य समाज तक विस्तार करने और इसे शक्तिशाली बनाने का आह्वान किया है। आर्य समाज से सम्बन्धित युवा वर्ग ने अनेक अन्य नामों से संगठन बना रखे हैं। कुछ संगठन ऐसे भी हैं जो अपने नाम में आर्य शब्द का तो प्रयोग नहीं करते पर उनके कार्यक्रम आर्य समाज के अनुकूल हैं। ऐसे कार्यक्रम बहुधा समाजवादी और क्रान्तिकारी शब्दों द्वारा परिमाणित किये गये हैं।
मैं समझता हूं कि यह सभी आर्य युवक संगठन अपनी-अपनी दृष्टि से आर्य समाज के कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। परन्तु मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि आर्य वीर दल की अपनी विशेषता है, इसका कोई विकल्प नहीं है। दल की उत्पत्ति ही आर्य समाज की रक्षा के लिये हुई।
शारीरिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास का पूरा कार्यक्रम केवल मात्र दल के पास ही है। विदेशों में भी जहां-जहां पर आर्य समाज पहुंचा है, उनमें से अधिकांश स्थानों पर आर्य वीर दल की भी स्थापना हो चुकी है। अतः आर्य प्रतिनिधि सभाओं तथा अन्य आर्य संस्थाओं एवं आर्य समाजों को आर्यवीर दल नाम से ही युवकों का संगठन बनाना चाहिये।
ज्ञातव्य है कि सार्वदेशिक सभा द्वारा सार्वदेशिक आर्य वीर दल के प्रधान संचालक की नियुक्ति की जाती है, जो प्रान्तीय संचालकों की नियुक्ति करता है । यह समस्त प्रांतीय संचालक, सार्वदेशिक आर्य वीर दल समिति के सदस्य होते हैं । आर्य प्रतिनिधि सभा अपने प्रान्त में आर्य वीर दल अधिष्ठाता को नियुक्ति करती है जो प्रांतीय आर्य वीर दल समिति का प्रधान होता है । आर्य प्रतिनिधि सभा के मन्त्री एवं कोषाध्यक्ष, प्रान्तीय आर्य वीर दल समिति के पदेन सदस्य होते हैं । प्रान्त में आर्य वीर दल के कार्य को संचालित करने का उत्तरदायित्व संयुक्त रूप से अधिष्ठाता और संचालक का होता है।
इसी प्रकार (जिला) और नगर स्तर पर भी आर्य वीर दल समितियों का गठन होता है, जिसमें आर्यसमाज के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व रहता है। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि आर्य वीर दल एक मात्र मान्यता प्राप्त युवा संगठन है । और इसकी समितियों में प्रत्येक स्तर पर आर्य समाज का प्रतिनिधित्व ही नहीं इसका नियन्त्रण भी है। आर्य वीर दल की शक्ति पर ही आर्य समाज का भविष्य निर्भर करता है ।
(संदर्भ : सार्वदेशिक साप्ताहिक, 27 अक्तूबर 1985 ई.)

डाक्टर स्वामी देवव्रत सरस्वती जी के अनुसार आर्य वीर दल का इतिहास, आर्य वीरों के त्याग और बलिदान और शौर्य से भरा पड़ा है। उदगीर के भाई श्यामलाल, धारूर से काशीनाथ, हुतात्मा वेदप्रकाश आदि दर्जनों आर्यवीर, धर्मरक्षा हेतु अपने प्राणों की बाजी लगा गए । सक्खर के आर्यवीर नारायणराव ने भारत विभाजन के समय, माताओं-बहनों की लाज बचाते हुए वीरगति प्राप्त की।
आर्य वीर दल के सेनापति श्री ओ३म् प्रकाश त्यागी जी, पं. नरेन्द्र (हैदराबाद) और पं. बाल दिवाकर हँस आदि ने जिस निष्ठा से आर्य वीर दल को गति प्रदान की है, वे सब धन्यवाद के पात्र हैं
इस समय) भारत के 17 प्रान्तों में आर्य वीर दल का प्रचार और प्रसार है । अमेरिका, कनाडा, सूरीनाम, गयाना, फीजी, मारीशस, नेपाल, कीनिया, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में आर्य वीर दल की शाखा चल रही है। सतीश आर्य न्यूयार्क अमरीका में, ब्र. दीपक मारीशस में, राजूकपिला और उनके साथी कीनिया में कार्य कर रहे हैं।
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली द्वारा नियुक्त सार्वदेशिक आर्य वीर दल के प्रधान संचालक / सेनापति
1. श्री शिवचन्द्र जी- सन् 1936 ई. सन् 1940 ई. तक
2. श्री ओमप्रकाश त्यागी जी – सन् 1940 ई. से सन् 1972 ई. तक
3. पं. नरेन्द्र जी सिकंदर – सन् 1972 ई. से सन् 1976 ई. तक4
4. श्री बाल दिवाकर हंस जी – सन् 1976 इ. से सन 1991 ई. तक
5. डॉ. स्वामी देवव्रत सरस्वती जी – सन् 1991 ई. 2018 ई. से तक
6. श्री सत्यवीर आर्य – अक्तूबर 2018 से :
सार्वदेशिक सभा का त्रिशाखन् होने पर सार्वदेशिक आर्य वीर दल न्यास बनाना पड़ा।
आर्य वीर दल द्वारा किये गए
सेवा कार्य :-
1. आदि में अकाल पीड़ितों की सेवा-सन् 1937 में रतलाम, उज्जैन, इन्दौर
2. तूफान पीड़ितों की सेवा – सन् 1942 ई. में मिदनापुर (बंगाल) में, 1959 में उड़ीसा में सन् 2005 में चेन्नई व नागापटनम में
3. बाढ़ व भूकम्प पीड़ितों की सेवा – 1950 ई. में आसाम, 1979 में मोरवी (गुजरात) व केकड़ी (राजस्थान) में, 1993 में लातूर (महाराष्ट्र), 1979 में, 1999 में चमोली (उत्तराखंड), भुज (गुजरात) में सन् 2001 में, 2
013 ई. में उत्तराखंड में
रक्षा कार्य :-
1. सन् 1946 ई. में नवाखली (बंगाल) तथा त्रिपुरा में मुस्लिम आतताईयों से हिन्दुओं के जान-माल व मां-बेटियों के सतीत्व की रक्षा की।
2. सन् 1946 ई. में नवाखली में कांग्रेस की नेता श्रीमति सुचेता कृपलानी को मुस्लिम गुण्डों द्वारा अपहरण करने से बचाया।
3. हैदराबाद के निज़ाम के बैंक से उसका लाखों रुपया छीन कर गृहमंत्री सरदार पटेल को सौंपा।
4. नगरकीर्तनों का निर्बाध संचालन करवाया।
5. हिन्दुओं की सुध्दी करवाई।
6. गोकशी को रोककर गौ की रक्षा करना।
प्रबन्ध कार्य- समस्त आर्य महासम्मेलनों में सुरक्षा व भोजन का प्रबन्ध करना।
संस्कृति रक्षा – नई पीढ़ी को वैदिक संस्कृति के सिद्धान्तों से परिचित कराना।
Watch video :-
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा बार-बार दिया गया निर्देश :-
(क) 17 मई सन् 1970 ईस्वी की सार्वदेशिक साप्ताहिक पत्रिका में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री श्री रामगोपाल शाल वाले ने आर्य समाजों के लिए यह निर्देश जारी किए :-
1. आर्य वीर दल के संगठन को गांवों तक पहुंचाना आवश्यक है। आर्य समाज एवं प्रांतीय सभाएं आर्यवीर दलों को अपना पूरा सहयोग दें।
2. आर्यवीरांगना दल स्थापित किए जाएं, जिनका संचालन आर्यवीरांगना ही करें। भारत से बाहर भी इस कार्य को प्रमुखता दी जाए।
(ख) 30-31 मई सन् 1970 ईस्वी को सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से अखिल भारतीय आर्य वीर दल महासम्मेलन का आयोजन आर्य समाज दीवान हॉल दिल्ली में किया गया। इसमें यह बात प्रमुखता से कही गई
कि आज हमारे सम्मुख अनेक नवयुवक संगठन विद्यमान हैं। इनसे राष्ट्र का भला नहीं हो सकता और ना ही यह ऋषि दयानंद के आदेश की पूर्ति कर सकते हैं। यदि कोई देश, जाति, धर्म-संस्कृति तथा आर्य समाज की रक्षा कर सकता है तो वह केवल आर्य नवयुवक संगठन आर्य वीर दल ही कर सकता है।
(ग) 8 अक्टूबर सन् 1972 के सार्वदेशिक साप्ताहिक पत्रिका में आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री श्री ओम प्रकाश त्यागी जी ने भारत के समस्त आर्य समाजों के लिए यह निर्देश जारी किया।
कि सभा को यह सूचना कई स्थानों प्राप्त हुई है कि आर्य समाज के लोग आर्य वीर दल के स्थान पर अन्य संस्थाओं को अपने यहां प्रश्रय देते हैं। जबकि सार्वदेशिक सभा यह निर्णय कर चुकी है कि आर्य समाज आर्य वीर दल एवं आर्य कुमार सभा के अतिरिक्त अन्य किसी संस्था को अपने यहां कार्य करने की अनुमति न दें। आर्य समाजों का यह आचरण अपने संगठन व अनुशासन के विरुद्ध है।
(घ) दिसम्बर 1975 में आर्य समाज की स्थापना को 100 वर्ष पूर्ण हुए। इस अवसर पर सार्वदेशिक सभा दिल्ली ने रामलीला मैदान नई दिल्ली में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्मेलन का आयोजन किया और उसमें 12 सूत्री कार्यक्रम को क्रियान्वयन करने का निर्देश दिया। इसमें क्रम संख्या दो पर यह निर्देश सभी आर्य समाजों को दिया गयाः-
समस्त आर्य समाज अपने-अपने संगठन में आर्य कुमार सभाएं, आर्य वीर दल एवं आर्य वीरांगना दलों का आयोजन करें।
(ड़) सार्वदेशिक साप्ताहिक पत्रिका 25 दिसंबर 1983 के अनुसार सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा का वार्षिक अधिवेशन दिसंबर 1983 को हैदराबाद में संपन्न हुआ। सभा प्रधान श्री रामगोपाल शाल वाले की अध्यक्षता में जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, उनमें निर्णय संख्या 4 में कहा गया कि युवा शक्ति को आर्यवीर दलों के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाएगा।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आर्यसमाज का विधान समस्त संगठन आर्य वीर दल ही है।
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मैं रुपेन्द्र आर्य जी को*आर्य वीर दल ही क्यों* मेरी इस शोधपूर्ण पुस्तक को सर्वसाधारण को उपलब्ध कराने के लिए, हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। रुपेन्द्र आर्य एक बहुत ही उत्साही, पुरुषार्थी, ऋषि मिशन को समर्पित शिक्षक हैं। आप मैदान में तो शस्त्र संचालन में निपुण हैं ही, लेकिन नवीनतम सूचना तकनीक के द्वारा आर्य वीर दल के प्रचार प्रसार में भी उतने ही निपुण हैं। मैं उनके सुखद भविष्य की कामना करता हूं।
गुरु जी एवं आप लोगों की प्रेरणा से हम उत्साह पूर्वक काम कर पा रहे हैं ।