उत्तरकाशी भूकंप 1991, लातूर भूकंप 1993, चमौली भूकंप 1994,
उड़ीसा चक्रवात 1 999, गुजरात भूकंप 2001 और सुनामी 2004 के समय आर्य
समाज से संबंधित किसी भी संगठन द्वारा चलाए गए अब तक के सबसे बड़े संगठित
राहत अभियान, आर्यवीरों की गौरव गाथा कह देते हैं। चाहे भूकंप हो या तूफान, आर्यवीर
दल के प्रशिक्षित आर्यवीर देश पर आने वाली हर विपत्ति का सामना करने को हर पल तैयार रहते हैं।
इसके अतिरिक्त 1992 व 1996 में सार्वदेशिक आर्यवीर दल के राष्ट्रीय
शिविरों का सफल आयोजन भी निर्विघ्न संपन्न कराया। 1997 में दिल्ली और 2001
में मुंबई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन की विशेष जिम्मेदारी सार्वदेशिक
सभाद्वारा आर्यवीर दल को सौंपी गई, जिसे आर्यवीरों ने बखूबी निभाया |आर्यवीर
दल के इतिहास में अब तक के वृहदतम अंतर्राष्ट्रीय आर्यवीर महासम्मेलन, 1998
के आयोजन को सफल बनाने के लिए दिल्ली के आर्यवीरों ने महीनों तक कड़ा परिश्रम
किया था। 2002 में गुरुकुल कांगड़ी शताब्दी समारोह की पूरी व्यवस्था भी आर्यवीरों
ने ही सम्भाली थी।
आर्यवीर दल की अनेकों शाखाएं समय-समय पर आर्य समाजों में होने वाले
उत्सवों में पूरे दल-बल के साथ भाग लेती हैं। व्यायाम प्रदर्शन के साथ व्यवस्था के
कार्य भी आर्यवीर बखूबी संभालते हैं।
हर वर्ष 25 दिसंबर पर निकलने वाली स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान शोभायात्रा
में आर्यवीर दल की शाखाएं पूरे उत्साह से भाग लेती हैं। पूरे मार्ग पर विभिन्न स्थानों पर
लाठी, तलवार, भाला व जिमनास्टिक का प्रदर्शन कर पूरे विश्व को आर्य समाज की
युवाशक्ति का परिचय दिया जाता है। शोभायात्रा को नियन्त्रित करने का कार्य भी आर्यवीर
अत्याधुनिक यंत्रो की सहायता से संभालते हैं।
युद्ध काल में रेलवे स्टेशनों पर प्रतिदिन एकत्र होकर, भारत मां की रक्षा के लिए
जाने वाले सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु विशेष उत्सव किए जाते हैं। युद्ध में घायल सैनिकों
के लिए रक्तदान के इच्छुक आर्यवीरों की सूची सेना मुख्यालय में हमेशा रहती है।युद्ध
में शहीद होने वाले सैनिकों के सम्मान में एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम आयोजित
किया जाता है। इस कार्यक्रम में आर्यवीर प्रेरक कविता,भजन,गीतों व नाटकों के माध्यम
से शहीदों को श्रद्धान्जली अर्पित करते हैं
एतिहासिक कार्य-
- करो या मरो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका ।
- हैदराबाद में निजाम शाषन के विरुद्ध सत्याग्रह ।
- पंजाब हिंदी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका ।
- मोपला उपद्रव में हिन्दुओ की रक्षा तथा दंगा पीडितो की सेवा।
- स्वतन्त्रता के समय पंजाब में हजारो, रावलपिंडी, में हिन्दू बहन बेटियों की रक्षा।
- हिन्दुओ के मेलो व उत्सवो में जनता की सेवा, सहायता व सुरक्षा।
- पूर्वी बंगाल (आज बांग्लादेश) के नोआखली में हिन्दुओ पर निर्मम संहार को रोकना ।
- विभाजन के समय भारत आये शराणार्थियो की रक्षा सेवा व सहायता करना।
- पूर्वी बंगाल की सीमा पर स्थित जयनगर के समीप
मुस्लिम गुंडों से हुए गोलीबारी युद्ध में विजयश्री का प्रतीक
उस समय छीना गया पाकिस्तानी झंडा आज भी आर्य वीर
दल के पास मौजूद है तथा आर्य वीरो के शौर्य की याद
दिलाता है। 1936के मध्य भारत में पड़े भयानक दुर्भिक्ष , 1942- - 43 में बंगाल का 45 लाख लोगो को मृत्यु का कारण भयंकर अकाल, 1950 में असम की बाढ़ में आर्य वीरो ने प्राण-प्रण से जनता की सेवा की।
- इस तरह २6 जनवरी 1921 से लेकर आज तक आर्य वीर दल मानव मात्र व सत्य की रक्षा के लिए प्राण-प्रण से कार्य करते हुए अपनी स्थापना के निम्न तीन उद्देश्यों को पूरा
करने में खरा उतरा है- - संस्कृति रक्षा
- शक्ति संचय
- सेवा कार्य
इस तरह आर्य वीर दल आज भी निरन्तर अनवरत रूप से
अपने कार्य को अंजाम दे रहा है। लेकिन बिडम्बना है कि
कुछ पूर्वाग्रहों के कारण आर्य वीर दल व इसकी मात्रि संस्था
आर्य समाज को इतिहास के पन्नो में स्थान नहीं दिया गया।
जिसके कारण बहुत से लोग इस राष्ट्रभक्त संस्था को नहीं
जान पाए । अतः इस लेख के माध्यम से लोगो को इसके
बारे में बताने का प्रयास किया गया है किन्तु यह तो मात्र
इसका परिचय है।