
सघन प्रशिक्षण के बाद आर्य वीरों को दीक्षांत समारोह में आर्य वीर दल की प्रतिज्ञा दिलाई गई। जिसके माध्यम से यह आर्यवीर अपने अपने क्षेत्र में देश समाज के उन्नति के लिए कार्य करेंगे।
इस शिविर में उत्कृष्ट आर्य वीरों को पुस्तक देकर सम्मानित किया गया।
जिसमें शाखा नायक श्रेणी मैं ।
प्रथम सत्यम अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
द्वितीय शिवम आर्य सोनीपत
तृतीय रोहित आर्य मेवात हरियाणा
उसी प्रकार
उप व्यायाम शिक्षक श्रेणी में
रामनिवास आर्य सोनीपत ,
सुरेश आर्य सोनीपत ,
विशाल आर्य दिल्ली के आर्य वीरों ने बाजी मारी ।
तथा व्यायाम शिक्षक श्रेणी में
ब्रह्मचारी संदीप आर्य सोनीपत प्रथम रहे । तथा द्वितीय देवाशीष दत्त पश्चिम बंगाल। तथा तृतीय प्रशांत आर्य अलीगढ़ उत्तर प्रदेश को प्राप्त हुआ।
शिविर का मुख्य संचालक स्वामी देवव्रत सरस्वती जी के निर्देशन में आर्य वीरों को प्रशिक्षण दिया गया । तथा मुख्य व्यायाम शिक्षक के रूप में छत्तीसगढ़ से आए रुपेन्द्र आर्य rupendraarya.com जी द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। एवं शिविर संयोजक के रूप में आचार्य ऋषि पाल जी के माध्यम से शिविर के सभी सुविधाओं की उत्कृष्ट व्यवस्था उन्हीं के द्वारा दी गई।
स्वाधीनता यज्ञ में गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ की आहुतियाँ
गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ, दिल्ली के बहुत ही समीप था, अतः देश में चल रहे राजनैतिक आन्दोलनों का इस पर प्रभाव पड़ना अपरिहार्य ही था। इस समय गुरुकुल के संचालक, श्री धर्मवीर जी वेदालंकार थे, जो सन् 1942 ई. तक पद पर रहे। गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने आन्दोलनों में भाग लिया। इसी दौरान अनेक क्रान्तिकारी गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में आश्रय लेने आए। क्योंकि एक तो यह गुरुकुल अरावली पर्वत माला पर स्थित था, दूसरा यहाँ चारों तरफ जंगल था। अतः क्रान्तिकारियों के छुपने के लिए, शस्त्राभ्यास के लिए, बम परीक्षण के लिए यह एक सुदृढ़ किला बन गया । गुरुकुल के प्रवेशद्वार की प्राचीर के साथ, भूमि के नीचे बना तहखाना तो क्रांतिकारियों के लिए बहुत ही सुविधाजनक गुप्त आश्रय स्थल बन गया। इस तहखाने में क्रांतिकारियों के अग्रज राम प्रसाद बिस्मिल. भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि ने अनेक बार आश्रय लिया। इसे असेम्बली हाल कहा जाता है।
लेकिन अधिक समय तक यह संस्था अंग्रेज सरकार की कोपदृष्टि से बची न रह सकी। अगस्त 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया गया तो अन्य देशवासियों के साथ गुरुकुल के अनेक अध्यापक, विद्यार्थी व कर्मचारी भी स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े।

